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राजनीतिराज्य/जिलावाराणसी

कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने सपा-बसपा पर बोला हमला, किसान आंदोलन पर कही यह बात

वाराणसी। उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने बुधवार को वाराणसी में कहा कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी किसानों की हितैषी नहीं हैं। उन्होंने कहा कि मायावती और अखिलेश यादव भाजपा को किसान विरोधी बताते हैं। यूपी में धान खरीद के आंकड़े और उससे किसानों को हुआ फायदा यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि मायावती और अखिलेश यादव ने 10 साल के कार्यकाल में जितना काम नहीं किया उससे ज्यादा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने चार साल में किया है।मोदी और योगी सरकार अपने काम के दम पर जनता की चहेती बनी हुई है। भाजपा परिवारवाद, जातिवाद और संप्रदायवाद से परे रह कर सबका साथ और सबका विकास की भावना से सिर्फ जनता की सेवा कर रही है।
कृषि मंत्री ने कहा कि बसपा की सरकार थी तो साल 2007 से लेकर 2012 तक 114 लाख 88 हजार मीट्रिक टन धान खरीदी की गई थी। धान की कीमत के तौर पर 5 सालों में 10,850 करोड़ 13 लाख रुपए किसानों को दिए गए। इस खरीदारी का फायदा मात्र 4 लाख 1,845 किसानों को हुआ। यानी सिर्फ सीमित संख्या में किसानों को फायदा हुआ। बसपा के समय में धान खरीद में छोटे किसानों को बिल्कुल भी फायदा नहीं मिलता था। समाजवादी पार्टी की सरकार ने साल 2012 से 2017 के 5 साल के कार्यकाल में 123 लाख 61 हजार मीट्रिक टन धान खरीदी की। किसानों को 17,190 करोड़ 85 लाख रुपए का भुगतान किया गया। इस खरीदारी का फायदा 14 लाख 87 हजार 519 किसानों को हुआ। वहीं, साल 2017 से अब तक के 4 साल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने 214 लाख 56 हजार मीट्रिक टन धान की खरीद की। भाजपा सरकार ने किसानों को 37,825 करोड़ 66 लाख रुपए का भुगतान किया है। अभी 2021-22 की धान खरीद का काम बाकी है। भाजपा सरकार में उत्पादन के साथ ही राज्य की उत्पादकता भी बढ़ी है।

आंदोलन करने वाले किसानों के हितैषी नहीं
नए कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलनरत किसानों के सवाल पर मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने कहा कि बनारस और चंदौली या आसपास के किसी अन्य जिले में कहीं कोई प्रदर्शन हो रहा है। प्रदेश के बॉर्डर पर कुछ लोग बैठ कर गलत तथ्य के आधार पर भ्रांतियां पैदा कर देश की जनता को गुमराह करना चाहते हैं। भारत सरकार ने 11 बार बातचीत का प्रयास किया और बार-बार यही पूछा कि क्या कमियां हैं। हम उन्हें दूर करने को तैयार हैं। मगर वह कमियां नहीं बता पा रहे हैं। सिर्फ यही जिद कर रहे हैं कि कानूनों को निरस्त कर दिया जाए। वह कोई चर्चा या बहस भी नहीं चाहते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि वे लोग किसानों के हितैषी नहीं है। अगर वे लोग किसानों के हितैषी होते तो तर्कपूर्ण तरीके से सरकार को कृषि कानूनों की कमियों के बारे में बताते और उनमें सुधार किया जाता।

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