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विधानभवन में नजर नहीं आएंगे पूर्वांचल के दो सबसे बड़े बाहुबली, एमएलसी चुनाव से इसलिए पीछे हटे बृजेश सिंह

चंदौली। पूर्वांचल के दो सबसे बड़े बाहुबली बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी अगले पांच साल विधानभवन की चौखट नहीं लांघ पाएंगे। हालांकि परिवार के जरिए दोनों यूपी की सियासत में अपनी पैठ बनाए रखेंगे। योगी सरकार की हनक और बेटे को स्थापित करने के लिए मुख्तार अंसारी ने विधान सभा चुनाव से दूरी बना ली जबकि पत्नी और बेटे के लिए ही बृजेश सिंह ने आखिरी समय पर एमएलसी चुनाव से अपना नाम वापस ले लिया।

विधानभवन में नजर नहीं आएंगे दोनों बाहुबली
माफिया से माननीय बने बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी की अदावत जग जाहिर है। दोनों की दुश्मनी और वर्चस्व की जंग में कइयों को अपनी जान गंवाई पड़ी। एक समय पूर्वांचल रक्तांचल के नाम से जाना जाने लगा था। कभी मखनू सिंह गिरोह के सदस्य रहे मुख्तार अंसारी का आज पूर्वांचल में दबदबा है। सपा और बसपा सरकार में मुख्तार की तूती बोलती थी। अपने रसूख और बाहुबल के दम पर अंसारी और उसके गिरोह ने कोयला, बालू, खनन, रेलवे, स्क्रैप, शराब आदि के कारोबार में अरबों का साम्राज्य खड़ा कर लिया। अपने कद को और बड़ा करने के लिए मुख्तार ने राजनीति में कदम रखा और 1996 में विधायक बन गए। इसके बाद पूर्वांचल में मुख्तार अंसारी का सिक्का चलने लगा। धुर विरोधी बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह की हनक कम पड़ने लगी। लेकिन प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने और सीएम के रूप में योगी आदित्यनाथ के शपथ लेते ही मुख्तार अंसारी का बुरा दौर शुरू हो गया। सरकार का शिकंजा कसने लगा और मुख्तार सलाखों के पीछे चले गए। विधान सभा चुनाव में खुद की जगह बड़े बेटे अब्बास को चुनाव लड़वाया। अब मुख्तार पर्दे के पीछे से ही राजनीति करते नजर आएंगे।

इस वजह से एमएलसी चुनाव से पीछे हटे बाहुबली बृजेश
राजनीति के समागम के बाद जिस तरह के मुख्तार अंसारी का पूर्वांचल में दबदबा बढ़ा उससे बृजेश खेमा बेचैन हो उठा। जिस बृजेश सिंह की एक तस्वीर तक पुलिस के पास नहीं थी उसे खुद को सामने लाना पड़ा। सरेंडर करने के बाद बृजेश सिंह ने जेल से ही चुनाव लड़ने का फैसला किया। 2012 विधान सभा चुनाव में सैयदराजा से किस्मत आजमाई। लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। इसके बाद 2016 में वाराणसी क्षेत्र से विधान परिषद सदस्य बने। 2022 एमएलसी चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी कर ली थी। बतौर निर्दल उम्मीदवार नामांकन पत्र तक दाखिल कर दिया था। लेकिन सत्ता पक्ष के दबाव के चलते बृजेश सिंह ने अपनी दावेदारी वापस ले ली। बगैर सत्ता के संरक्षण के बृजेश सिंह का पूर्वांचल की सियासत में पांव जमा पाना संभव नहीं था। बीजेपी में शामिल होने में उनकी आपराधिक छवि आड़े आ रही है। लिहाजा बृजेश सिंह ने खुद की बजाए पत्नी अन्नपूर्णा सिंह को चुनाव लड़ाने का फैसला लिया और अपनी दावेदारी वापस ले ली। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद अन्नपूर्णा सिंह भाजपा में शामिल हो जाएं। बृजेश के पीछे हटने का लाभ पुत्र सिद्धार्थ को भी मिल सकता है। बीजेपी अन्नपूर्णा सिंह और सिद्धार्थ को अपना सकती है लेकिन बृजेश को साथ लेने की जहमत उठाने के मूड में नहीं है।

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