चंदौली। हिंदू धर्म में आषाढ़ माह की पूर्णिमा का दिन वर्ष के सबसे शुभ दिनों में माना जाता है। इस दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इस बार गुरु पूर्णिमा खास है, क्योंकि इस दिन बुधादित्य राजयोग बन रहा है। इन दिन यदि कोई शिष्य पूरी श्रद्धा के साथ गुरु की चरण वंदना करे तो उसकी मनोकामना जरूर पूरी होगी।
ज्योतिषाचार्य पंड़ित अतुल शास्त्री ने बताया कि इस बार गुरु पूर्णिमा वाले दिन ब्रह्म योग, इंद्र योग और बुधादित्य राजयोग बन रहा है। इन शुभ योग में गुरुओं दीक्षा लेना शुभफलदायी होगा। गुरु की चरण वंदना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी। जीवन के कष्ट दूर होंगे। सफलता की राह आसान होगी। ब्रह्म योग 02 जुलाई 2023, रात 07.26 – 03 जुलाई 2023 दोपहर 03.45 तक इंद्र योग तीन जुलाई 2023, दोपहर 03.45 – 04 जुलाई 2023, सुबह 11.50, बुधादित्य राजयोग 24 जून को बुध का मिथुन राशि में प्रवेश हुआ. सूर्य पहले से ही मिथुन राशि में विराजमान हैं. ऐसे में इन ग्रहों की युति से बुधादित्य राजयोग बन रहा है। ऋषि वेद व्यास का जन्म गुरु पूर्णिमा के दिन हुआ था। वेद व्यास को कई पुराणों, वेदों और महाभारत जैसे कुछ सबसे महत्वपूर्ण हिंदू ग्रंथों का रचियता होने का श्रेय प्राप्त है। गुरु पूर्णिमा वेद व्यास के सम्मान में मनाई जाती है, वे प्राचीन भारत के सबसे सम्मानित गुरुओं में से एक हैं। आधुनिक शोधों में भी यह बात सिद्ध होती है कि वेद व्यास ने हिन्दू संस्कृति के चारों वेदों की संरचना की। महाकाव्य महाभारत की रचना की। कई पुराणों के साथ-साथ हिंदू सभ्यता की पवित्र विद्याशैली के विशाल विश्वकोशों की नींव रखी। जिस दिन भगवान शिव ने आदि गुरु या मूल गुरु के रूप में सप्त ऋषियों को ज्ञान दिया था, जो सभी वेदों के दृष्टा थे। योग सूत्र में प्रणव या ओम के रूप में ईश्वर को योग का आदि गुरु कहा गया है। कहा जाता है कि भगवान बुद्ध ने इसी दिन सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया था, जो इस पवित्र दिन की महत्ता को चिह्नित करता है। गुरु पूर्णिमा हमारे अज्ञान को दूर करने वाले शिक्षकों के सम्मान में मनाई जाती है। प्राचीन काल से ही शिष्यों के जीवन में गुरु का विशेष स्थान रहा है। हिंदू धर्म की सभी पवित्र पुस्तकें गुरुओं के महत्व और एक गुरु और उनके शिष्य (शिष्य) के बीच के असाधारण बंधन को दर्शाती हैं। एक सदियों पुराना संस्कृत वाक्यांश माता पिता गुरु दैवम कहता है कि पहला स्थान माता के लिए, दूसरा पिता के लिए, तीसरा गुरु के लिए और आगे भगवान के लिए आरक्षित है। गुरु पूर्णिमा हिंदू, जैन, सिख और बौद्ध समुदायों द्वारा गुरुओं या शिक्षकों के सम्मान में मनाई जाती है। गुरु वह व्यक्ति है, जो आपके जीवन से अज्ञान को मिटाता है, इसलिए गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरु के प्रति अपना सारा सम्मान प्रकट करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। यह दिन आप अकादमिक और आध्यात्मिक दोनों शिक्षकों को समर्पित कर सकते है। इसके अलावा, यह शुभ दिन ध्यान के लिए सबसे अच्छा माना जाता है और साथ ही योग साधनाओं के लिए भी यह दिन अति उत्तम माना गया है। आप इस दिन से अपनी दिनचर्या को अधिक बेहतर, सैद्धांतिक और अनुशासित बनाने का प्रण ले सकते हैं। सबसे पहले आप गुरु को नमन करें। यदि आपके गुरु आपके पास हैं, तो उन्हें तिलक लगाएं और आरती करें। यदि गुरु आपके पास नहीं हैं, तो गुरु के चित्र पर माल्यार्पण करें। गुरु पूर्णिमा पूजा में आप गुरु के द्वारा दिए गए मंत्र का जाप जरूर करें। गुरु पूर्णिमा के इस दिन से जुड़ी का बड़ा महत्व है। तो इस दिन भगवान विष्णु की प्रार्थना करने का सबसे अच्छा तरीका विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना है जो भगवान विष्णु के एक हजार नाम की सूची हैं।
गुरु यंत्र की करें पूजा
वैदिक ज्योतिष के सिद्धांतों के अनुसार, आप एक अभ्यस्त और ऊर्जावान गुरु यंत्र की पूजा भी कर सकते हैं, खासकर यदि बृहस्पति ग्रह एक या अधिक ग्रहों के साथ आपकी जन्म कुंडली में मौजूद हों। यह आपकी कुंडली में गुरु या भगवान बृहस्पति के अच्छे प्रभावों को मजबूत करने में आपकी मदद करेगा। यदि आपकी जन्म कुंडली में गुरु अपनी नीच राशि यानी मकर राशि में है, तो आपको नियमित रूप से किसी गुरु यंत्र की पूजा करनी चाहिए। आपकी जन्म कुंडली में बृहस्पति – राहु, बृहस्पति – केतु या बृहस्पति – शनि की युति होने पर भी गुरु यंत्र की पूजा करना आपके लिए अनुकूल है। यदि गुरु आपकी कुण्डली में नीच भाव में अर्थात छठे, आठवें या बारहवें भाव में है तो आपको किसी ऊर्जावान गुरु यंत्र की पूजा करनी चाहिए। गुरु ग्रह के दुष्प्रभावों से बचने के लिए पुखराज भी पहना जा सकता है। धन-दौलत, व्यापार, नौकरी, संतान या स्वास्थ्य संबंधी किसी भी तरह की समस्या आपको नहीं होगी।