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चंदौलीः जानिए कैसे तबाह हुई थी माटीगांव की कुषाणकालीन बस्ती, बीएचयू पुरातत्व विभाग ने किया खुलासा

चंदौली। मांटीगांव में लगभग दो हजार साल पहले विकसित कुषाणकालीन सभ्यता जल प्रलय की भेट चढ़ गई थी। बीएचयू पुरातत्व विभाग की टीम की खोदाई में इसके साक्ष्य मिले। 80 सेंटीमीटर तक खोदाई में मिट्टी की ऐसी सतह मिली है, जो बाढ़ से प्रभावित प्रतीत होती है। इसी के आधार पर पुरातत्व विशेषज्ञ यह दावा कर रहे हैं।

खोदाई में कुषाणकालीन फर्श में इस्तेमाल ईंटें मिलीं
उत्खनन टीम को खोदाई में कुषाणकालीन फर्श में इस्तेमाल होने वाले वृहद आकार के ईंटों के कुछ टुकड़े प्राप्त हुए हैं। इनका परिमाप लगभग 50×40×12 सेंटीमीटर है। इस स्तर से सफेद कंकड़, घोंघे व सीप के अवशेष, ईंटों के खंडित टुकड़े व लाल मृदभांड के टुकड़े मिले हैं। पीली बलुई और दोमट मिट्टी भी मिली है। इसके आधार पर पुरातत्व विशेषज्ञ मानते हैं कि यहां एक भीषण बाढ़ आई रही होगी, जिससे कुषाणकाल में बृहद स्तर पर जनमानस प्रभावित हुआ होगा। बीएचयू की टीम पहले से ही उत्खनन करा रही है। पूर्व में यहां गुप्तकालीन संरचनाओं के कुछ नीचे ही इस तरह के प्रमाण मिलने शुरू हो जाते हैं। 150-200 सेमी नीचे खोदाई में ताम्रपाषाणिक मृदभांड के टुकड़ों के साथ ही साथ उत्तरी काली चमकीली मृदभांड के टुकड़े भी मिले हैं। ग्रामीणों का कहना है कि टीला संख्या दो पर स्थित मंदिर को भांडेश्वर महादेव का मंदिर कहा जाता है।

गुप्तकाल से पहले विकसित थी मानव सभ्यता
टीले पर पश्चिम की तरफ लगभग 100 मीटर के क्षेत्रफल में खोदाई के दौरान ईटों के बड़े-बड़े टुकड़े प्राप्त हुए। इससे यह कहा जा सकता है कि कुषाण काल व उसके बाद के समय में गुप्तकाल से पहले यहां मानव सभ्यता विकसित थी। तत्कालीन दौर में यहां एक प्रलयकारी बाढ़ आयी होगी, जिसकी वजह से कुषाणकालीन बस्तियों का अंत हो गया होगा। माटीगांव में उत्खनन का कार्य काशी हिंदू विश्वविद्यालय प्राचीन भारतीय इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर ओंकारनाथ सिंह के मार्गदर्शन में चल रहा है।

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