
जय तिवारी की रिपोर्ट
चंदौली। हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी का व्रत रखा जा रहा है। यह एकादशी पूरे वर्ष की एकादशियों में सबसे कठिन, पुण्यदायक और मोक्षदायिनी मानी जाती है। इस दिन श्रद्धालु बिना अन्न और जल ग्रहण किए उपवास रखते हैं, इसी कारण इसे ‘निर्जला’ एकादशी कहा जाता है। बलुआ घाट पर पश्चिम वाहिनी गंगा में स्नान करने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को करने से वर्ष भर की सभी 24 एकादशियों के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है। यदि किसी कारणवश वर्ष की अन्य एकादशियों का व्रत न कर पाए हों या खंडित हो गया हो, तो निर्जला एकादशी का व्रत उसे पूर्ण कर देता है।
महाभारत में वर्णित एक कथा के अनुसार, पांडवों में भीमसेन ने केवल यही एकादशी का व्रत किया था। इसलिए इसे ‘भीमसेनी एकादशी’ भी कहा जाता है।
इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की विधिवत पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस व्रत को करने से समस्त पापों का नाश होता है, जीवन के कष्ट दूर होते हैं और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इस वर्ष एकादशी तिथि की शुरुआत 6 जून की रात 2:15 बजे से हुई है और यह 7 जून की सुबह 4:47 बजे तक रहेगी।
धार्मिक नियमों के अनुसार इस दिन चावल और बैगन जैसे खाद्य पदार्थ पदार्थों का सेवन वर्जित माना जाता है।