
चंदौली। पत्नी की मौत के कुछ ही दिन बाद प्रसिद्ध कथा वाचक मोरारी बापू के काशी में रामकथा वाचन और मंदिर दर्शन को लेकर धार्मिक और वैदिक समाज में तीव्र प्रतिक्रिया देखने को मिली है। इस विषय पर धर्मशास्त्र, आचार्य संवाद और सामाजिक दृष्टिकोण से विवेचना करते हुए डैडीज़ इंटरनेशनल स्कूल के संस्थापक डॉ. विनय प्रकाश तिवारी ने एक शोधपरक लेख प्रस्तुत किया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि यह लेख न तो व्यक्तिगत आलोचना है, न ही किसी के श्रद्धा भाव को ठेस पहुँचाने का प्रयास, बल्कि यह शास्त्रों की दृष्टि से विषय की मर्यादा का विवेचन है।
डॉ. तिवारी ने अपने लेख में कई धार्मिक ग्रंथों और धर्माचार्यों से प्राप्त मतों का उल्लेख करते हुए यह बताया कि गृहस्थ संत पर भी सूतक के नियम लागू होते हैं जब तक वे विधिवत संन्यास ग्रहण न कर लें। गौतम धर्मसूत्र के अनुसार, माता-पिता के निधन पर क्रमशः 7 और 10 दिन का सूतक माना जाता है। चूंकि मोरारी बापू स्वयं को गृहस्थ मानते हैं और उनकी पत्नी का हाल ही में निधन हुआ, इसलिए वे इस शास्त्रीय मर्यादा के अंतर्गत आते हैं।
लेख में दूसरा महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठाया गया कि क्या वैष्णव होने के कारण मोरारी बापू सूतक से मुक्त थे? इस पर नारद संहिता का हवाला दिया गया जिसमें स्पष्ट है कि केवल संन्यासी वैष्णव सूतक के नियमों से मुक्त होते हैं, गृहस्थ वैष्णव नहीं।
तीसरा और सबसे संवेदनशील बिंदु यह था कि क्या सूतक के दौरान मंदिर दर्शन, कथा वाचन और देव पूजन किया जा सकता है? मनुस्मृति और पद्म पुराण जैसे शास्त्रों का उद्धरण देते हुए बताया गया कि सूतक काल में व्यक्ति को किसी भी प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान या देवदर्शन से वर्जित माना गया है। ऐसे कार्य करने से पुण्य का ह्रास होता है।
कुछ विद्वानों ने यह भी संकेत दिया कि मोरारी बापू का यह कृत्य संभवतः भावनात्मक श्रद्धांजलि का प्रयास रहा हो, किंतु भावना कभी भी शास्त्रीय अनुशासन से ऊपर नहीं मानी जाती। धार्मिक जननायक होने के नाते मोरारी बापू से अपेक्षा रहती है कि वे स्वयं मर्यादा के उदाहरण बनें, न कि अपवाद।