- 1952 से 1984 तक चंदौली लोकसभा सीट पर रहा कांग्रेस का कब्जा चंदौली की जनता ने पांच बार बीजेपी पर जताया भरोसा, खिलाया कमल बीजेपी ने तीसरी बार डा. महेंद्रनाथ को दिया टिकट, सपा से वीरेंद्र सिंह
- 1952 से 1984 तक चंदौली लोकसभा सीट पर रहा कांग्रेस का कब्जा
- चंदौली की जनता ने पांच बार बीजेपी पर जताया भरोसा, खिलाया कमल
- बीजेपी ने तीसरी बार डा. महेंद्रनाथ को दिया टिकट, सपा से वीरेंद्र सिंह
चंदौली। लोकसभा चुनाव के लिए तिथियों की घोषणा के साथ ही राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई है। भाजपा, सपा समेत प्रमुख राजनीतिक दलों ने अपने उम्मीदवार मैदान में उतार दिए हैं। सबसे हाट सीट मानी जाने वाली वाराणसी के सटी चंदौली लोकसभा सीट का भी अपना अलग इतिहास रहा है। शुरूआत में यह कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। यहां तक कि समाजवादी चिंतक व राजनीतिक पुरोधा डा. राममनोहर लोहिया भी चुनाव में कांग्रेस का किला नहीं भेद सके और उन्हें मात खानी पड़ी। चंदौली की जनता पांच बार कमल खिला चुकी है। लगातार दो बार विजयी रहे भाजपा के डा. महेंद्रनाथ पांडेय इस बार हैट्रिक लगाने की तैयारी में हैं। वहीं सपा पूर्व मंत्री वीरेंद्र सिंह को मैदान में उतारकर उन्हें कड़ी टक्कर दे रही है।
चंदौली लोकसभा सीट पर 1952 से लेकर 1984 तक कांग्रेस का कब्जा रहा। 1952 और 1957 में कांग्रेस के त्रिभुवन नारायण सिंह जीते। वहीं 1962 में बालकृष्ण सिंह, 1971 में सुधाकर पांडेय, 1984 में चंद्रा त्रिपाठी कांग्रेस से सांसद रहीं। इसके बाद कांग्रेस की राजनीतिक पकड़ यहां ढीली पड़ गई। राममंदिर आंदोलन के बाद लोग बीजेपी को विकल्प के रूप में देखने लगे। इसका नतीजा रहा कि भाजपा के आनंदरत्न मौर्य ने लगातार तीन बार जीत हासिल की। इसके बाद 1999 में सपा, 2004 में बसपा और 2009 में सपा ने जीत हासिल की। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार डा. महेद्रनाथ पांडेय पर जनता ने भरोसा जताया। बीजेपी ने यहां बड़ी जीत हासिल की। 2019 में डा. महेंद्रनाथ दोबारा विजयी हुए। उन्होंने सपा-बसपा गठबंधन उम्मीदवार को मात देते हुए लगातार दूसरी बार जीत हासिल की। भाजपा ने तीसरी बार भी उन पर भरोसा जताते हुए टिकट दिया है। इस बार सपा पीडीए के फार्मूले के साथ चुनाव मैदान में है। सपा ने पूर्व मंत्री व लंबे राजनीतिक अनुभव वाले वीरेंद्र सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है।