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संस्कृति एवं ज्योतिष

Kartik Mahina 2023: भगवान विष्णु ने क्यों लिया शालिग्राम का अवतार, वृंदा कैसे बनीं तुलसी? पढ़ें ये पौराणिक कथा

कार्तिक का महीनी हिंदू धर्म में पूर्ण रूप से भगवान विष्णु को समर्पित होता है। भगवान नारायण की अनेक दिव्य लिलाओं से जुड़ा यह कार्तिक का महीना शास्त्रों में अति पावन बताया गया है। कार्तिक महीने में स्नान, दान और भगवान विष्णु की भक्ति करने का बड़ा महत्व बताया गया है। मान्यता है कि जिसने इस महिने भगावन विष्णु की भक्ति सच्चे मन से कर ली उसके सभी कष्ट जगत-पालक भगवान विष्णु हर लेते हैं।

शास्त्रो में तो इस महीने की बड़ा दिव्य महिमा बताई गई है। कार्तिक में जहां भगवान विष्णु अपनी योगनिद्रा से उठते हैं। वहीं उन्होंने अपनी कई दिव्य लीलाएं भी की हैं। आज हम भगवान विष्णु के शालीग्राम अवतार की महिमा कथा आपको बताने जा रहे हैं। वैष्णव संप्रदाय और वैष्णव भक्तों के यहां भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप की पूजा की जाती है। तो आइये जानते हैं भगवान विष्णु के शालिग्राम अवतार की उत्पत्ति से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में।

वृंदा दैत्य राज जलंधर की पत्नी थी

पौराणिक काल की बात है। एक वृंदा नाम की लकड़ी थी जिसका जन्म राक्षस कुल में हुआ था। राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी पूर्व जन्म के कर्मों के कारण वृंदा को विष्णु भक्ति प्राप्त थी। वृंदा नित्य भगवान विष्णु की भक्ति में बचपन से ही लीन रहती थी। जब वहा बड़ी हुई तब उसका विवाह राक्षस कुल के दैत्य राज जलंधर से हुआ। वृंदा को विष्णु भक्ति प्राप्त होने के कारण उसमे राक्षस कुल के कोई भी संस्कार उसमें नहीं थे। वह एक पतिव्रता स्त्री थी और हमेशा अपने पति की सेवा करती थी। एक बार देवताओं और दानवों में बड़ा भीषण युद्ध हुआ। जलंधर भी उस युद्ध में जाने की तैयारी कर बैठा वृंदा ने अपने पति से कहा जब तक आप युद्ध में रहेंगे मैं तब तक आपके कुशल मंगल की कामना के लिए पूजा करूंगी।

जब हुआ वृंदा के पति जलंधर का वध

युद्ध के दौरान जलंधर को कोई हरा नहीं पा रहा था। देवता परेशना हो कर भगवान विष्णु के पास पहुंचे और कहने लगे दैत्यों ने सारे जगत में हाहाकार मचा कर रखा है। आपकी भक्त वृंदा के पतिव्रता होने के कारण हम सभी देवता जलंधर को युद्ध में हराने के लिए आसमर्थ हैं। देवताओं ने भगवान विष्णु से कहा प्रभु अब आप ही कुछ करें। भगवान विष्णु सृष्टि के पालन करता हैं और उन्होनें इसका उपाय निकाला। भगवान विष्णु ने देवताओं को आश्वासन दिया कि मैं इसका उपाय निकालता हूं। इतना कहते ही भगवान विष्णु अपना रूप बदलकर वृंदा के सामने जलंधर बन कर पहुंचे। वृंदा को लगा की उनके पति युद्ध जीत कर आगए हैं और उसने भगवान विष्णु को जलंधर समझ कर उनके चरण स्पर्श कर लिए। जैसे ही वृंदा ने भगवान विष्णु को जलंधर समझ कर उनके पैर छुए वहीं देवताओं ने जलंधर को युद्ध में मार गिराया।

भगवान विष्णु बनें शालिग्राम

वृंदा को अपने पति की मृत्यु की सूचना जब मिली तो वह हैरान हो गई और विष्णु जी से पूछा आप कौन हैं। तब भगवान विष्णु ने अपना साक्षात रूप प्रकट किया। वृंदा ने रूठे मन से भगवान विष्णु से कहा मैने सदा आपकी ही भक्ति की प्रभु उसका यह परिणाम। वृंदा ने उसी पल भगवान विष्णु को पत्थर के हो जाने का श्राप दिया और भगवान विष्णु ने वृंदा के श्राप को स्वीकार किया फिर शालिग्राम का अवतार ले लिया। वृंदा के श्राप के बाद लक्ष्मी जी वृंदा के पास आईं और कहा कि जिन्हें आपने श्राप दिया है वो सृष्टि के पालन करता श्री हरी हैं। यदि आपने अपना श्राप वापस नहीं लिया तो ये सारा जगत कैसे चलेगा। मां लक्ष्मी की विनती के बाद वृंदा ने अपना श्राप वापस लिया और अपने पति के वध के वियोग में सति हो गईं। उनकी राख से जो पौधा निकला उसे भगवान विष्णु ने तुलसी का नाम दिया और कहा, आज से मेरा शालिग्राम अवतार जो श्राप के कारण पत्थर बना है उसे तुलसी जी के साथ सदैव पूजा जाएगा। जो भी मेरे प्रिय भक्त हैं वो जब तक मुझे तुलसी नहीं अर्पित करेंगे में उनकी पूजा नहीं स्वीकार करूंगा। इस तरह वृंदा सदैव के लिए तुलसी के रूप में पूजनीय हो गईं।

 

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