
Rail News:
डीडीयू जंक्शन पर वर्षों से फल-फूल रहा अवैध वेंडरिंग का धंधा आखिरकार जीआरपी की सख्ती के बाद ध्वस्त हो गया है। जिस अवैध कारोबार को रोकने की जिम्मेदारी आरपीएफ की थी, उसी की सरपरस्ती में यह काला धंधा परवान चढ़ता रहा। आरपीएफ और जीआरपी के बीच चल रही आपसी खींचतान के बीच जीआरपी ने बड़ी कार्रवाई करते हुए 18 अवैध वेंडरों को गिरफ्तार कर पूरे नेटवर्क को हिला कर रख दिया है। आरपीएफ छोटे-छोटे तस्करों को पकड़ कर खुद की पीठ थपथपाने में लगी है। तस्करी से जुड़े बड़े माफियाओ तक हाथ पहुंच नहीं पाए हैं।
सूत्रों के अनुसार यह वेंडरिंग सिंडिकेट प्रतिमाह करीब 8 से 10 लाख रुपये की अवैध वसूली करता था, जिसमें बड़ा हिस्सा आरपीएफ के कुछ अधिकारियों-कर्मचारियों तक पहुंचता था। इस काले कारोबार की जड़ें गहरी हैं और इसकी कमान वर्षों से ठेकेदार नामक व्यक्ति के हाथ में है, जिसने अवैध वेंडरिंग से करोड़ों का साम्राज्य खड़ा कर लिया है।
ठेकेदार के साथ मिलकर आशीष जायसवाल और मल्लू चौहान भी इस नेटवर्क को चला रहे हैं। आशीष जहां बाहर से बिना लाइसेंस के खाद्य सामग्री प्लेटफॉर्म पर बिकवाता है, वहीं मल्लू आरपीएफ के कुछ कर्मचारियों के लिए चाय-नाश्ते से लेकर अन्य सेवाओं की व्यवस्था करता है। आशीष पिछले कुछ समय से शराब तस्करी में भी हाथ आजमा रहा है।
इस पूरे रैकेट में आरपीएफ के दो कथित कारखास – बबलू और एक अन्य की भूमिका भी सामने आई है, जो बगैर वर्दी के वसूली और निगरानी का काम करते हैं।
जीआरपी की छापेमारी से फिलहाल अवैध वेंडरिंग पर नकेल कस दी गई है, लेकिन इस पूरे प्रकरण ने आरपीएफ की कार्यप्रणाली और भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना यह है कि कार्रवाई सिर्फ वेंडरों तक सीमित रहती है या इसके पीछे छिपे ‘संरक्षकों’ तक भी कानून का शिकंजा पहुंचता है।
ठेकेदार और आरपीएफ के दूसरे कारखास की कुंडली अगले भाग में….