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गुप्त नवरात्र : 26 जून से शुरू होगा शक्ति आराधना का पर्व, जानें महात्म्य और पूजन विधि

चंदौली। गुप्त नवरात्र शक्ति की उपासना का विशेष पर्व है, जो तंत्र-साधना और सिद्धियों की प्राप्ति का अत्यंत शुभ अवसर माना जाता है। इस वर्ष आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि 26 जून से आरंभ होकर 4 जुलाई तक चलेगी। ज्योतिष गुरू पंडित अतुल शास्त्री के अनुसार, यह नवरात्रि साधकों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती है, जिसमें दस महाविद्याओं की पूजा की जाती है।

 

गुप्त नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा के दस शक्तिरूपों काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला की साधना की जाती है। इस तंत्र साधना के लिए विशेष अनुशासन और नियमों का पालन आवश्यक होता है। साधकों को एक ही स्थान पर नियमित रूप से पूजा करनी चाहिए और पूजा सामग्री व आसन को किसी अन्य के उपयोग से बचाना चाहिए।

 

इस बार गुप्त नवरात्रि की शुरुआत 26 जून को प्रातःकाल में कलश स्थापना के साथ होगी। प्रतिपदा तिथि 25 जून को शाम 4 बजे से प्रारंभ होकर 26 जून को दोपहर 1:24 बजे तक रहेगी, इसलिए उदया तिथि के अनुसार 26 जून को नवरात्रि प्रारंभ मानी जाएगी। कलश स्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त सुबह 10:58 से 11:53 तक रहेगा। इस बार विशेष ध्रुव योग और सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है, जिससे यह नवरात्रि और अधिक फलदायी मानी जा रही है।

 

पंडित अतुल शास्त्री बताते हैं कि गुप्त नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ, घी का दीपक जलाकर माता का पूजन, तथा शक्ति के विभिन्न रूपों का ध्यान करना चाहिए। यह पर्व न केवल साधना का, बल्कि आत्मिक शुद्धि और शक्ति जागरण का भी माध्यम होता है। नवरात्रि में हर दिन एक महाविद्या की उपासना करने से साधक को विशेष सिद्धियों की प्राप्ति होती है।

 

ऐतिहासिक दृष्टि से भी शक्ति की आराधना का महत्व रामायण से जुड़ी कथाओं में मिलता है, जहां राम ने लंका विजय से पूर्व देवी की उपासना कर उन्हें 108 कमलों से प्रसन्न किया था। वहीं, देवी दुर्गा के महिषासुर वध की कथा भी शक्ति की अपार महिमा को दर्शाती है। गुप्त नवरात्रि का पर्व गहन साधना, संयम और शुद्धता का प्रतीक है। जो साधक समर्पण और श्रद्धा से इस काल में शक्ति की आराधना करते हैं, उन्हें दिव्य अनुभवों और सिद्धियों की प्राप्ति संभव होती है।

 

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