
वाराणसी : एक पखवाड़े तक काढ़ा पीकर स्वास्थ्य लाभ लेने के बाद नाथों के नाथ भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र, छोटी बहन सुभद्रा के साथ सोमवार (Monday) शाम मनफेर के लिए प्रतीक रूप से रजत डोली में सवार होकर शहर भ्रमण के लिए निकले।
अस्सी स्थित जगन्नाथ मंदिर से लोक परंपरा के अनुसार निकली प्रभु की डोली यात्रा में शामिल होने के लिए श्रद्धालुओं में होड़ रही। ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भक्तों के प्रेम में अत्यधिक स्नान के बाद एक पखवाड़े तक बीमार हुए भगवान जगन्नाथ रविवार (Sunday) शाम को स्वस्थ हुए अगले दिन सोमवार (Monday) को प्रभु की डोली यात्रा निकलने के पूर्व अस्सी स्थित भगवान जगन्नाथ के मंदिर का पट सुबह पांच बजे खुल गया। सुबह 5.30 बजे मंदिर के पुजारी पं राधेश्याम पाण्डेय की अगुआई में मंगला आरती हुई। सुबह आठ बजे दूध का नैवेद्य, फिर महानैवेद्य का भोग लगाया गया। इसके बाद दोपहर 12 से अपराह्न तीन बजे तक मंदिर के पट बंद रहे। अपरान्ह तीन बजे पट खुलते ही प्रभु की कपूर आरती हुई, जिसमें ट्रस्ट जगन्नाथ के सचिव शापुरी परिवार ने भी हिस्सेदारी की।
फिर 3.30 बजे प्रभु और उनके भाई बहन के विग्रह का डोली श्रृंगार हुआ। ठीक अपराह्न चार बजे तीनों विग्रह को गाजे बाजे मंगल ध्वनि के बीच डोली पर विराजमान कराया गया। डोली को आगे पीछे कर चार-चार कहारों ने उठाया। इसी के साथ भगवान की डोली यात्रा निकल पड़ी। भगवान की डोली को कांधा देने के लिए आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। वृन्दावन विहारी लाल की जय, हर हर महादेव के उद्घोष से फिजा गुजांयमान हो गया। डोली यात्रा जगन्नाथ मंदिर से परम्परागत मार्ग दुर्गाकुण्ड, नबाबगंज खोजवां, शंकुलधारा स्थित द्वारकाधीश मंदिर पर पहुंची। यहां भगवान के विग्रह की आरती उतारी गई।
यहां से डोली यात्रा कमच्छा, बैजनत्था होते हुए रथयात्रा स्थित बेनीराम बाग शापुरी भवन पंहुची। यहां पुजारियों और शापुरी परिवार ने डोली यात्रा और उसमें शामिल साधु सन्तों स्वयं सेवकों, पुजारियों, नागरिकों का स्वागत कर विधि विधान से पूजन अर्चन किया। यहां प्रभु अपने परिवार के साथ कुछ समय के लिए विश्राम करेंगे। फिर सोमवार (Monday) देर रात भगवान को रथारूढ़ कर रथयात्रा स्थित मेला क्षेत्र में पहुंचाया जाएगा। इसी के साथ काशी की विश्वप्रसिद्ध तीन दिवसीय रथयात्रा मेला शुरू हो जायेगी।