चंदौली। जनप्रतिनिधियों को लेकर जनता की क्रोनोलाजी समझिए। जनप्रतिनिधि ऐसा हो जो आसानी से सुलभ हो, जिससे लोग अपना दुख-दर्द कह सकें। जो मूलभूत समस्याओं का निस्तारण करा सके। जमीन से जुड़ा व्यक्ति हो। डा. महेंद्र नाथ पांडेय मंत्री बनने के बाद जनता की इन तीनों ही उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पा रहे थे। भारी उद्योग मंत्री बनने के बाद जनता जनार्दन की नजर में हल्के होते चले गए। रही सही कसर गणेश परिक्रमा करने वाले नेताओं ने पूरी कर दी। आईए जानते हैं ईमानदार छवि होने के बाद भी डा. महेंद्र नाथ पांडेय को लोक सभा चुनाव में मिली हार के प्रमुख कारण
मंत्री बनने के बाद जनता से दूर होते चले गए
जब तक सांसद रहे तब तक तो ठीक था। प्रत्येक शनिवार को पार्टी कार्यालय में उपस्थित रहकर जनता की फरियाद सुनते थे। निस्तारण के लिए अधिकारियों को निर्देशित करते थे। लेकिन जैसे ही मंत्री बने यह सिलसिला टूट गया। केंद्रीय मंत्री जनता के लिए आउट आफ रीच हो गए। दिशा को छोड़कर किसी सरकारी बैठक में नजर नहीं आए। विकास भवन में बना सांसद कक्ष का ताला शायद ही 10 वर्षों में एक या दो दफा खुला हो। रेवड़ी की तरह जनप्रतिनिधि बना दिए जो उनके नाम पर अपना भौकाल टाइट करते थे और हर जगह अपनी उपस्थिति दर्ज कराते थे। केंद्रीय मंत्री का जब कभी कार्यक्रम भी लगता तो कुछ चुनिंदा लोगों के यहां ठहरते थे। मुगलसराय में तो एक स्थान मंत्री जी का दूसरा ठिकाना हो गया था। बंद गाड़ी में पहुंचते और मीटिंग के बाद निकल जाते थे।
करीबी नेताओं ने बिगाड़ा खेल
केंद्रीय मंत्री के आस-पास उन नेताओं का जमावड़ा रहता जो नेता कम ठीकेदार ज्यादा थे। केंद्रीय मंत्री उन्हीं के चश्मे से ही जिले की समस्याओं और भौगोलिक स्थिति को देखते थे। ये वही नेता हैं जो तकरीबन हर बड़े नेता के आस-पास मंडराते नजर आ जाते हैं। सत्ता बदली तो अपने कुर्ते का रंग और गाड़ी का झंडा भी बदला देते हैं। इन्हीं नेताओं ने मंत्री जी को भी अपनी गिरफ्त में ले रखा था। हर किसी को मंत्री जी के पास नहीं पहुंचने देते थे। जनता तो दूर की बात है मीडिया कर्मियों के लिए भी डा. महेंद्र नाथ पांडेय से बात कर पाना आसान नहीं था। कार्यालय होे या कोई सार्वजनिक मंच केंद्रीय मंत्री के आस-पास घेरा बनाए रहते। इन नेताओं का जनता के बीच न तो अच्छा जनाधार था ना ही अच्छी छवि थी। ऐसे में अन्य जमीनी कार्यकर्ता और समर्थक केंद्रीय मंत्री से छिटकते चले गए।
बड़े कामों पर जोर स्थानीय समस्याओं की अनदेखी
चंदौली पालीटेक्निक लगभग टूटने की कगार पर पहुंच चुका है। चंदौली राजकीय डिग्री कालेज में शिक्षकों की भारी कमी है। जिले की कई ग्रामीण सड़कें जर्जर हैं। बड़े उद्योग का अभाव है। मुगलसराय को छोड़कर अन्य स्टेशनों पर एक्सप्रेस ट्रेनों का ठहराव नहीं हो रहा है। इस समस्याओं को केंद्रीय मंत्री नजरअंदाज करते रहे। बड़े काम गिनामते रहे लेकिन जिले की मूलभूत समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया। यह भी डा महेंद्र नाथ पांडेय को लेकर जनता की नाराजगी का कारण रहा। ईमानदार और विकास पुरुष की छवि होने के बाद भी महेंद्र नाथ पांडेय को जनता ने तीसरी दफा नकार दिया।