
चंदौली। डीडीयू जंक्शन से संचालित शराब तस्करी अब “हाथी के दांत” जैसी बनती जा रही है, जिसमें दिखाने के लिए कुछ छोटी कार्रवाइयां होती हैं, लेकिन असल खेल बदस्तूर जारी रहता है। चंद तस्करों को पकड़कर वाहवाही लूट ली जाती है, जबकि बड़ी खेप अब भी रेल मार्ग के सहारे खुलेआम एक राज्य से दूसरे राज्य तक पहुंचाई जा रही है। लगातार सामने आ रही घटनाएं रेलवे सुरक्षा व्यवस्था और जिम्मेदार एजेंसियों की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर रही हैं।
विगत दिनों आरा के बाद जमीरा हाल्ट पर सीमांचल एक्सप्रेस की चेन पुलिंग कर तस्करों के उतरने की घटना ने पूरे सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर दिया। बताया गया कि इस दौरान ट्रेन में मौजूद आरपीएफ एस्कॉर्ट पर तस्करों द्वारा पथराव और फायरिंग तक की गई। यह घटना सिर्फ कानून-व्यवस्था का सवाल नहीं है, बल्कि यह दर्शाती है कि तस्करों के हौसले किस कदर बुलंद हैं।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में शराब तस्कर ट्रेनों में सवार कैसे हो जाते हैं। यार्ड हो या स्टेशन परिसर, बिना रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) की जानकारी या मिलीभगत के इतनी बड़ी तस्करी संभव कैसे है। जानकारों का मानना है कि यदि सुरक्षा व्यवस्था सख्त और ईमानदार हो, तो तस्करों का प्रवेश ही रोका जा सकता है।
आरपीएफ की कार्यशैली पहले भी सवालों में रही है। शराब तस्करी से जुड़े मामलों में पूर्व में दो आरपीएफ सिपाहियों की हत्या तक हो चुकी है, जो यह दर्शाता है कि यह नेटवर्क कितना खतरनाक और संगठित है। इसके बावजूद तस्करी पर पूरी तरह अंकुश नहीं लग पा रहा है, जो चिंता का विषय है।
हाल के दिनों में शराब तस्करी को लेकर आरपीएफ और जीआरपी के बीच हाथापाई की घटनाएं भी सामने आई हैं। इससे साफ है कि सुरक्षा एजेंसियों के बीच समन्वय की भारी कमी है। जब कानून लागू कराने वाली एजेंसियां आपस में ही उलझी हों, तो अपराधियों के हौसले बढ़ना स्वाभाविक है।
अब बड़ा सवाल यह उठता है कि सुरक्षा एजेंसियां अपने मूल उद्देश्य से कैसे भटक गईं। क्या जनता की सुरक्षा और कानून के पालन की शपथ केवल औपचारिकता बनकर रह गई है। जरूरत इस बात की है कि डीडीयू जंक्शन समेत पूरे रेल नेटवर्क पर शराब तस्करी के खिलाफ ईमानदार, पारदर्शी और कठोर कार्रवाई हो, ताकि कानून का डर बहाल हो सके और तस्करी के इस खेल पर वास्तविक रोक लगाई जा सके।

