
छठ महापर्व : छठ पूजा कोई साधारण त्योहार नहीं, यह वो आस्था है जिसके आगे देश के बड़े-बड़े शहर खाली हो जाते हैं और भारत की सबसे बड़ी मानव यात्रा चुपचाप बिहार, पूर्वी यूपी और झारखंड की ओर लौटती दिखाई देती है। इस साल नज़ारा बिल्कुल वैसा ही है। रेलवे ने 1500 से ज़्यादा स्पेशल ट्रेनें चलाईं, सूरत रेलवे स्टेशन पर 1 किलोमीटर लंबी लाइनें लगीं और बेंगलुरु, दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों की सड़कों पर अचानक ट्रैफिक कम हो गया… क्योंकि सब एक ही दिशा में थे—घर, छठ मनाने।
छठ सिर्फ पूजा नहीं, एक आर्थिक शक्ति भी है
हर साल करोड़ों लोग अपने गांव लौटते हैं। सिर्फ बिहार राज्य में ही छठ पूजा के दौरान 9000 से 10,000 करोड़ रुपये तक का कारोबार होता है। ये पैसे कहां-कहां लगते हैं?
कहां होता है इतना पैसा खर्च?
फल और अर्घ्य सामग्री – सबसे बड़ा कारोबार
केला, नारियल, शक्करकंद, गन्ना, नींबू, सेब, सिंघाड़ा, मौसमी– इन सबकी मांग अचानक कई गुना बढ़ जाती है।
सिर्फ पटना, आरा, दरभंगा, मुजफ्फरपुर जैसे शहरों में 2500–3000 करोड़ रुपये के फल बिकते हैं।
पूरे बिहार में यह आंकड़ा 5000–6000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाता है।
मिट्टी के दीये, सुप, दौरा और बांस की टोकरियां
सिवान, छपरा, बलिया और गाजीपुर के कारीगर पूरे साल इसी दिन का इंतज़ार करते हैं।
छठ के दौरान इन उत्पादों का व्यापार 500–700 करोड़ रुपये तक होता है।
सफर से चलती अर्थव्यवस्था – ट्रेन, बस, ऑटो, टैक्सी
रेलवे टिकट, बस, निजी गाड़ियां, ई-रिक्शा मिलाकर 2000 करोड़ रुपये से अधिक का परिवहन कारोबार होता है।
रेलवे का अकेले का राजस्व छठ के दौरान कई सौ करोड़ रुपये तक बढ़ जाता है।
मिठाई, कपड़े और बाजारों में रौनक
मीठा खाने का त्योहार नहीं है, फिर भी ठेकुआ, लड्डू, खजूर, घी, गुड़ का कारोबार 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा।
महिलाओं की साड़ी, सिंदूर, बच्चों के कपड़ों व पारंपरिक पहनावे का बाजार 1500–2000 करोड़ रुपये।
लोग इतनी दूर से क्यों लौटते हैं?
ये त्योहार नहीं, पहचान है।
ये सिर्फ पूजा नहीं, मां के संस्कार और परिवार का मिलन है।
किसी भी नौकरी, शहर या पैसे से ज्यादा जरूरी घर होता है — खासकर छठ पर।
जो पूरे साल मुंबई या दिल्ली की लोकल ट्रेन पकड़ते हैं, वो छठ पर गांव की मिट्टी छूने को बैचैन रहते हैं।
छठ क्यों है खास?
यह एकमात्र पूजा है जिसमें उगते और डूबते सूर्य दोनों को अर्घ्य दिया जाता है।
व्रती 36 घंटे तक बिना पानी के रहते हैं—यानी आस्था के साथ अनुशासन की पराकाष्ठा।
सबसे अनोखी बात — इसमें कोई पुजारी नहीं होता, सिर्फ मां, मिट्टी, पानी और सूर्य।
अंतिम बात
छठ पूजा यह साबित करती है कि भारत की सबसे बड़ी ताकत उसकी आस्था और परिवार है। यह त्योहार न केवल दिलों को जोड़ता है, बल्कि गांवों की अर्थव्यवस्था में नया रक्त भी भर देता है। जब घाटों पर दिया जलता है, तो सिर्फ जल नहीं उठता, एक संस्कृति, एक अर्थव्यवस्था और एक विराट भावना भी रोशनी पकड़ लेती है।
डेटा सोर्स:
बिहार सरकार और इंडस्ट्री रिपोर्ट्स में त्योहार आधारित आर्थिक गतिविधि का औसत विश्लेषण
पिछले वर्षों में छठ, दिवाली, दुर्गा पूजा जैसे त्योहारों पर ट्रेड बॉडीज (जैसे CAIT — Confederation of All India Traders) द्वारा जारी किए गए अनुमानित आंकड़े
ग्राउंड बेस्ड अवलोकन + बाजार विशेषज्ञों, समाचार रिपोर्टिंग और स्थानीय व्यापारियों से मिलने वाले डेटा का औसत
लेखक – डॉ. विनय प्रकाश तिवारी
संस्थापक – LTP Calculator Financial Technology Pvt. Ltd & Daddy’s International School & Hostel, बिशुनपुरा कांटा, चंदौली (UP)

